Wednesday 21 December 2016

तैमूर नाम रखने के पीछे का सच – सुधीर मौर्य

यद्द्पि मुगलिया सल्तनत 1857में ही ख़त्म हो गई थी पर वो फिर भी इसी आस में रहे की कभी न कभी अंग्रेजो के जाने पे वही इस देश के शासक होंगे। जब 1947 में उन्हें लगा वे शासक नही बन रहे तो उन्हें बहुत दुःख हुआ साथ ही साथ वे गुस्से से उपल पड़े। जगह – जगह उन्होंने दंगे किया, क़त्लोआम किया और इस तरह वे देश के एक हिस्से के शासक बनने में कामयाब हो गए। देश का यही टुकड़ा आज दो भागो में बांटकर पाकिस्तान और बांग्लादेश कहलाता है जहाँ 1947 से अब तक गैरमुस्लिमो पे अत्याचार जारी हैं।
1857 में अपने साम्राज्य का विनाश होने के बाद वे आज भी ये मानने को तयार नही कि वे अब भी देश के एक बड़े हिस्से के शासक नही है लेकिन वे साम, दाम दंड, भेद से इस देश के शासक बनना चाहते हैं।बस इसी कामना से ये अपने बच्चो के नाम उन आक्रांताओ के नाम रखते हैं जिन्होंने इस देश पे हमला करके इसको लुटा, क़त्लोआम बलात्कार किया और इस देश के शासक बन बैठे।


मुझे याद है जब बुश ने इराक़ पे हमला किया तो इसी देश की कई बस्तियों के घरों की दीवारों पे ‘बुश गड्ढे में घुस’ और सद्दाम ज़िंदाबाद जैसे नारे लिखे होते थे। इस दौर में पैदा होने वाले कई लड़के आज सद्दाम नाम से जाने जाते हैं।
जब ओसामा आतंक की नई इबारत लिख रहा था तो इसी देश के कई लोगो ने उसे अपना हीरो माना और उस अंतराल में पैदा हुए अपने बच्चों के नाम शान से ओसामा रखा।
ग़ज़नवी, गोरी, तैमूर, बाबर, नादिर, अब्दाली और ओसामा इनकी नज़र में इनके हीरो हैं। और ये इस लालसा में अपने बच्चो के नाम इनके नाम पे रखते हैं कि शायद कोई इनकी तरह निकले और इस देश में इनका शासन फिर से स्थापित हो जाये।
सैफ अली खान के पूर्वज भी इस देश की सत्ता के हिस्सेदार रहे थे। किसी एक स्टेट के नवाब कहलाते थे। 1947 के बाद नवाब शब्द सिर्फ नाम के लिए साथ रह गया। लेकिन अब तक वो ये भुला न सका कि उसके आबा कभी नवाब रहे थे। उसने अपने लड़के का नाम इसी लालसा में तैमूर रखा कि शायद वो तैमूरलंग की तरह निकले और वापस उसे यहाँ का नवाब बना सके।
तुगलक वंश का फ़िरोज़ तुग़लक़ और लोदी वंश का सिकंदर लोदी अपने – अपने वंश के सबसे ज्यादा क्रूरतम सुल्तान थे। जबकि इन दोनों की माताए हिन्दू थी। सनद रहे इतिहास में ऐसे कई उदारहण मिल जायेंगे कि हिन्दू माता और मुस्लिम पिता का पुत्र अधिक धर्मांध मुस्लिम शासक हुआ।

बहुत से कथित बुद्धजिवियों की भावनाये उस समय बुरी तरह से आहात हो गई थी जब देश के किसी नागरिक ने नाथूराम गोडसे को सांकेतिक सम्मान दे दिया था। इनकी भावनाये सावरकर, हेडगेवार और गोलवलकर का नाम लेते ही आहात हो जाती हैं। तैमूर और ग़ज़नवी आदि इनके लिए सम्मानसूचक नाम है और ये उन्हें बेहद पसंद करते है। आखिर लाल सलाम वालों को लाल रक्त बहाने वाले ही पसंद आएंगे। 
तुम्हारे इरादे तैमूर की शक्ल में तुम्हारे दिलों में हमेशा ज़िंदा रहते हैं। और हम तो अपने इरादे कब के दफन कर चुकें हैं प्रताप की शक्ल में। 
सच गलती तुम्हारी हरगिज़ नही है, तुम्हारे लिए तो तुम्हारी कौम ही सबकुछ है। गलती हमारी है जो हम मानवता के ढोंग में अपने को भुला बैठे हैं। अगर देखें तो जो तुम कर रहे है, जो तुम करना चाहते हो तो ये तुम्हारे दृष्टिक्रोण से बिलकुल ठीक है। अपने कौम का उत्थान, अपने महानायको को याद रखना तुम्हारा फ़र्ज़ है। हम क्या, हमारा तो कोई दृष्टिक्रोण ही नही है। 
तुम कौम के आगे देश की सरहदें भी नहीं मानते इसके कई उदाहरण हैं और सबसे ताज़ातरीन ये कि 'दंगल' रिलीज़ होने के वक़्त सरहद पार बॉलीवड की फिल्मो से प्रतिबंध हट जाता है। 
मैं सलाम करता हूँ तुम्हारे ज़ज्बे को और दुआ मांगता हूँ ईश्वर से कि हर कौम के प्राणी अपने कौम के बारे में वैसे ही सोचें जैसे कि तुम सोचते हो। 
कुछ लोगो को मेरा ये लेख कपोल – कल्पित लगेगा किन्तु ये सच्चाई के बेहद करीब है।
–सुधीर मौर्य

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुकर्वार (23-12-2016) को "पर्दा धीरे-धीरे हट रहा है" (चर्चा अंक-2565) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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