Sunday 27 May 2012

मुफलिसी




ऐ मुफलिसी ये क्या हुआ, ऐ बेबसी ये क्या हुआ

कल हमारा था जो, वो आज गैर हो गया
वो महताब आज तारों में कही पे खो गया
मे नाकारा जगता हूँ सारा आलम सो गया
ऐ मुफलिसी ये क्या हुआ, ऐ बेबसी ये क्या हुआ 

रात हंस हंस कर ये बोले तेरा साथी मयकदा 
गोद में साकी के जा तु जो हे गमजदा
तेरे किस कम के ये अब काबा और बुतकदा
ऐ मुफलिसी ये क्या हुआ, ऐ बेबसी ये क्या हुआ

यूँ लगा की मुकम्मल मेरा अरमा हो गया
मेरे घर में दो घडी जो चाँद मेहमां हो गया
चलते ही ठंडी हवा फिर हाय तूफां हो गया
ऐ मुफलिसी ये क्या हुआ, ऐ बेबसी ये क्या हुआ

अपने हाथो से मुकद्दर आज अपना तोड़ दूँ
जो बचा हे पास मेरे उसको भी अब छोड़ दूँ
इस गम-ऐ जिन्दगी को मौत के जानिब मोड़ दूँ
ऐ मुफलिसी ये क्या हुआ, ऐ बेबसी ये क्या हुआ

सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
०९६९९७८७६३४

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